वक्त
वो बचपन ना जाने कहाँ खो गया।
ये वक्त भी बित जाएगा, मेरे बचपन की तरह।
जब मॉं बाप के गोद में सर रखकर मैं चैन से सो पाऊँगा.......
वो बचपन ना जाने कहाँ खो गया।
जब मॉं बाप के गोद में सर रखकर मैं चैन से सो पाऊँगा.......
मॉं और पिता जिनके बिना ज़िन्दगी की कल्पना नहींं की जा सकती वहीं एक ओर मॉं के बारे में तो अनगिनत लेख, कविताएँँ तथा पुस्तकें लिखी जाती है लेकिन वहीं दूसरी ओर पिता को मानों भुला दिया जाता है।
तो क्या हम यह मानकर चलें कि परिवार में पिता का महत्व नहीं होता?
मेरी सोच के आधार पर तो ऐसा बिल्कुल भी नहीं है, क्योंकि जितना योगदान एक परिवार में मॉं का होता है उतना ही पिता का भी।
तो फिर ऐसा क्यों? क्या हम सिर्फ माँँ की ही प्रशंसा करना पसंद करते हैं या फिर इसका कोई और कारण है।
आइये सोचे
जैसे एक मॉं बच्चे को पीड़ा सहकर उत्पन्न करती है, उसी प्रकार पिता भी दिन भर अपनी पुरी मेहनत से काम करता है जिससे उसका परिवार चल सके।
हमें यह समझना होगा की हमारी जिंदगी में पिता की भूमिका भी मॉं से कम नहीं होती।
मॉं और पिता की भूमिकाओं में फर्क सिर्फ इतना है कि हर-एक बातों पर मॉं की भूमिका हमारे सामने होती है लेकिन पिता की भूमिका इसके ठीक विपरीत हमसे छिपी हुई होती है।
“पिता से ही जिंदगी है, पिता से ही हौसला है।
पिता राह है हमारे कल का, पिता स्वाभिमान है हमारे जिंदगी का।
पिता है तो जिंदगी की सारी खुशियॉं पास है।
और पिता ना हो तो जिंदगी में अन्धकार है।”
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पिता और बच्चे |